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मंडाबी (द मनी ऑर्डर)



उस्मान सेम्बेन को अफ्रीकी फिल्मों का पितामह कहा जाता है। वे अफ्रीका के सर्वाधिक प्रतिष्ठित लेखक होने के साथ-साथ महान फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता भी रहे हैं। वे दुनिया के पहले अश्वेत अफ्रीकी निर्माता-निर्देशक थे। सन् 1968 में प्रदर्शित उनकी फिल्म ‘मण्डाबी’ (द मनी ऑर्डर) अफ्रीकी राष्ट्र सेनेगल की पहली फिल्म है, जो वहां की स्थानीय भाषा ‘वोलोफ’ में बनाई गई थी और जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी उपशीर्षकों के साथ प्रदर्शन हुआ था।

सेनेगल पश्चिमी अफ्रीका का एक छोटा-सा गरीब देश है, जहां संसाधनों की कमी के चलते फिल्में बनाना दूर की कौड़ी है। ऐसी जगह एक गरीब मछुआरे के घर जन्म लेकर अत्यंत कष्टप्रद एवं संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के बावजूद अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा के बल पर उस्मान सेम्बेन ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। उनकी किताबें और फिल्में अफ्रीकी समाज का आईना हैं। उनकी अधिकांश फिल्में ब्लैक कॉमेडी शैली में होती थीं, जो जीवन के दर्द को हास्य के आवरण में लपेटकर प्रस्तुत करती थीं। ‘मण्डाबी’ भी उसी शैली की एक अद्भुत फिल्म है।

फिल्म का मुख्य पात्र इब्राहीम (माखोरेदिया गुये) एक गरीब, बेरोजगार आदिवासी है, जो अपनी दो पत्नियों और सात बच्चों के साथ अफ्रीका के एक छोटे-से गांव में रहता है। उसका भतीजा, जो पेरिस में सड़कें साफ करने का काम करता है, उसे 25,000 फ्रैंक का मनी ऑर्डर भेजता है। एक बेरोजगार व्यक्ति के लिए यह लॉटरी लगने के समान है किंतु वह उस मनी ऑर्डर से पैसे प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास कोई ‘आई डी प्रूफ’ या परिचय पत्र नहीं है। ‘आइडेंटिटी कार्ड बनवाने के लिए जन्म प्रमाण पत्र जरूरी है और जन्म प्रमाण पत्र के लिए फोटो जरूरी है। उसके पास इनमें से कुछ भी नहीं है। इस कार्ड बनवाने के चक्रव्यूह में वह उलझता चला जाता है। इन सारी बाधाओं को दूर करने के लिए वह खूब दौड़भाग करता है और ढेर सारे पैसे खर्च करता है। यहां तक कि यह अपनी बीवियों के गहने भी गिरवीं रख देता है लेकिन बात नहीं बनती। उसे हर कदम पर ठगा जाता है और मूर्ख बनाया जाता है। यहां तक कि उसके अपने रिश्तेदार, जो उसकी मदद के लिए टूट पड़ते हैं, अंततः अपने ही नाम से सारा पैसा निकलवाकर चंपत हो जाते हैं।

उस्मान सेम्बेन ने भोले-भाले, अशिक्षित गरीब ग्रामीणों के शोषण को बहुत सहज और प्रामाणिक तरीके से दर्शाया है। फिल्म देखते हुए ऐसा लगता है मानो सब कुछ वास्तव में घटित हो रहा है। इब्राहीम के पात्र को सेम्बेन ने बहुत कुशलता से रचा है। वह ठेठ अफ्रीकन ग्रामीण आदिवासी है, जिनके पास कोई स्थायी काम नहीं है, कोई नियमित आय का साधन नहीं है। वह हमेशा कर्ज में डूबा रहता है लेकिन अपनी बीवियों पर जबर्दस्त हुकुम चलाता है। वे गुलामों की तरह उसकी सेवा-चाकरी करती हैं, पैर दबाती हैं, मालिश करती हैं। वह अनपढ़ हैं लेकिन बहुत धार्मिक हैं। उसका मुख्य काम बीवियों को डांटना-डपटना, उनसे सेवा करवाना और हर साल बच्चे पैदा करना है। फिल्म की खूबी यह है कि ऐसा नाकारा निकम्मा पात्र भी दर्शकों की पूरी सहानुभूति ले जाता है।

इस फिल्म को देखना बिल्कुल अलग तरह का अनुभव है। यह करुण हास्य का बेहतरीन उदाहरण है। फिल्म की पटकथा बहुत ही चुस्त और मनोरंजक है। यह अफ्रीकी समाज की दुर्दशा ओर अराजकता को बहुत बारीकी से दिखाती है, जिसे देखकर मन द्रवित हो जाता है। लेकिन इसके साथ ही फिल्म में अत्यंत मनोरंजक दृश्य हैं, जो हंसने पर भी मजबूर करते हैं। मनी ऑर्डर की खबर फैलते ही पूरा गांव उसे पाने के लिए सक्रिय हो जाता है। मदद करने के नाम पर हर व्यक्ति धोखा देने को तत्पर है। इब्राहीम की स्थिति पेंडुलम की तरह हो जाती है, जो एक छोर से दूसरे छोर तक झूलता रहता है। दूसरी तरफ उसकी बीवियां मनी ऑर्डर के पैसे आने की आशा में जमकर शॉपिंग करने लगती हैं और दुकानदार खुशी-खुशी उन्हें सामान उधार देते हैं। कोने-कोने से उसके रिश्तेदार और मित्र जमा हो जाते हैं, जिन्हें कुछ-न-कुछ हिस्सा मनी ऑर्डर में से चाहिए। अंततः उसे कुछ नहीं मिलता और जो उसके पास था, वह भी चला जाता है।

इस फिल्म को अफ्रीका और विश्व के अनेक देशों में प्रदर्शित किया गया। 1970 में इसे भारत में भी दिखाया गया था। उस्मान सेम्बेन ने अपने लेखकीय और निर्देशकीय कौशल से फिल्म को अविस्मरणीय बना दिया है।

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2 Comments

Sarita Shrivastava "Shri"

01-Aug-2023 06:55 PM

बहुत ही शानदार और जानदार प्रस्तुति लाजवाब अभिव्यक्ति👍👍🌹🌹

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Zakirhusain Abbas Chougule

16-Jun-2022 02:37 PM

Nice

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